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भूले हुए शब्द की जगह / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
कितनी धड़कती भीड़ों में से ले आया
याद करना प्रार्थना के उस गीत का उसकी ठीक स्वरलिपि में
जो पंक्ति आधी याद थी
उस पर घुमड़ कर खिल गई एक नई तितली
धूप और फूल सहित सम्पूर्ण ।
और एक शब्द भूले हुए ब्द की जगह रच गया जो
कवि देखता तो कहन हीं पाता कि वह उसका नहीं है ।