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भूल गए हैं वो रंजिश में / पुरुषोत्तम प्रतीक

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भूल गए हैं वो रंजिश में
गंध नहीं रहती बंदिश में

मालामाल हुई हैं आँखें
चाहे आँसू हों गर्दिश में

चाँद-सितारों की दुनिया भी
शामिल है उनकी साज़िश में

कितनी आँखें हैं बादल की
सोच रहा था वो बारिश में

कैसा पद क्या मान-प्रतिष्ठा
शर्म नहीं रहती ख़ारिश में