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भूल झलकै कहाँ / सुधीर कुमार 'प्रोग्रामर'
Kavita Kosh से
भूल झलकै कहाँ नदानी मेॅ।
सब करलका भसैलेॅ पानी मेॅ।
रोेकला सेॅ कहाँ रूकै हाकिम
वक्त चलतेॅ रहै रवानी मेॅ।
खूब मिलतै सकून सूनी केॅ
गुदगुदी जों रहै कहानी मेॅ।
आय जे अैलै किताब नयकी टा
बात पहिंने छिले पुरानी मेॅ।
सोहदा जे कभी सुधरलै नय
मौत होलै भरल जुवानी मेॅ।