भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भूल / आभा पूर्वे

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्वेत कमल की पंखुड़ियों पर
तुमने महावर रचे
अपनी अंगुलियों से
एक रेखा खींच दी थी
और पूरा कमल जवाकुसुम-सा
रक्तिम हो गया था
मैंने व्यर्थ ही
रंगों को धोना चाहा था
ऐसा करके तो
सरोवर के ही सारे जल को
मैं लाल कर गई।