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भू के अंचल बीज बो रहा किसान / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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भू के अंचल बीज बो रहा किसान।
मानव से स्रष्टा अब हो रहा किसान॥

धरा स्वेद से सिंच कर
हो गई हरी ,
शीतल सुखमय पवन
सुगंध से भरी।
वसुधा पर पाँव टिके दृष्टि में विहान।
भू के अंचल बीज बो रहा किसान॥

मिट्टी का घर आंगन
मिट्टी की देह ,
मिट्टी में रचा-बसा
जीवन का स्नेह।
धूल भरी धरती पर सो रहा किसान।
भू के अंचल बीज बो रहा किसान॥

पेट की पतीली में
खौल रही भूख ,
आशा की धूप पड़ी
देह रही सूख।
अन्न दान कर कर के हो रहा महान।
भू के अंचल बीज बो रहा किसान॥

दुर्बल काया उस पर
विपदा का बोझ ,
सपने करते रहते
नित्य नये शोध।
झुक झुक कर कटि प्रदेश हो रहा किसान।
भू अंचल बीज बो रहा किसान॥

मन में है श्रद्धा का
दीप जल रहा ,
मंजिल अनदेखी पथ
अगम चल रहा।
यह गृहस्थ योगी है संत के समान।
भू के आंचल बीज बो रहा किसान॥