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भैंस गई फिर से पानी मे / रविशंकर पाण्डेय

भैंस गई फिर से पानी मे


दिल्ली की
बातें कहता हूं
गांवों की बोली बानी में
भैंस गई
फिर से पानी में!

हम भी हैं
कितने सैराठी,
थामे रहे
हाथ में लाठी

फिर भी
रोक न पाए उसको
क्या कर बैठे
नादानी में!

लाठी में अब
नहीं तंत है,
जनता तो
तोता रटंत हैय

मन करता है
बाल नोंच लें
खुद अपने ही
हैरानी में!

कहत कबीर
सुनो भाई साधो,
सब के सब
माटी के माधोय

बेच रहे ईमान धरम सब
महज एक
कौड़ी कानी में!