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भैरवी / राजकमल चौधरी
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जेना रातिक बाद भागल अबैत अछि भोर
जेना अन्हारक बाद भागल अबैत अछि इजोतक पिंड
-ओ गीत उमड़ल,
जेना वायुमे उधिआइत कारी-कारी बादरि।
रातिक शरीरसँ जनमल ओ नग्न आ निरर्थक गीत
जेना कोनो नग्न वृद्धा जर्जरा
जेना स्वप्नमे कोनो निरर्थक अपराध।
मुदा, ओ गीत उमड़ल
आ बाढ़ि जकाँ, बिहाड़ि जकाँ समस्त सृष्टि पसरि गेल
जेना अन्हारक बाद इजोतक पिंड
जेना भोर
जेना जलसँ भरल कारी बादरि।
आ वैह गीत पहिल बेर कयल हमर स्वप्न सार्थक
देलक नग्न वृद्धाकेँ अप्रतिम यौवन
रातिक शरीरसँ जनमल ओ नग्न आ निरर्थक गीत
भोरक भैरवीमे परिणत भेल
हमर कविताक माथ अवनत भेल।
(अभिव्यंजना: फरवरी-मार्च, 1961)