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भोगने दो मुझे / केदारनाथ अग्रवाल

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भोगने दो मुझे

लय न पा सकी, विलाप-व्याकुल

कविता की यातना ।

भोगने दो मुझे

बलात प्रताड़ित विकल बेबस

विचार की यातना ।

भोगने दो मुझे

होंठ से अटकी क्रान्तिकारी

पुकार की यातना ।

भोगने दो मुझे

अंधकार में जल रही मौन

मशाल की यातना ।

भोगने दो मुझे

आदमियों के बीच

आदमियों की बनाई हुई यातना ।