भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोरहरी की चहल-पहल दिन उगते ही वीरान / जयप्रकाश त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

भोरहरी की चहल-पहल दिन उगते ही वीरान ।
रातोरात ख़बर फैला दी किसने कानोकान ।

सूरज के चेहरे पर उमड़े
बादल काले-काले,
सरेआम रोशनी लूटकर
नाच रहे मतवाले,
ज़र्रा-ज़र्रा मिला रहा है धिन्नक-धिन्ना तान ।
रातोरात ख़बर फैला दी किसने कानोकान ।

बिना आँख के घूर रहे हैं
कस कर मुट्ठी बान्धे,
डाल-डाल पर उल्लू देखो
कैसी चुप्पी साधे,
उन्हे छोड़कर बाक़ी सब चिरई-चुनमुन हैरान ।
रातोरात ख़बर फैला दी किसने कानोकान ।

सुबह-सुबह आ गए कहाँ से
इतने आदमख़ोर,
जिनकी परछाईं में शामिल
गठरी-गठरी चोर,
बन्द द्वार पर चौखट-चौखट अनाहूत मेहमान ।
रातोरात ख़बर फैला दी किसने कानोकान ।