भोरहरी की चहल-पहल दिन उगते ही वीरान ।
रातोरात ख़बर फैला दी किसने कानोकान ।
सूरज के चेहरे पर उमड़े
बादल काले-काले,
सरेआम रोशनी लूटकर
नाच रहे मतवाले,
ज़र्रा-ज़र्रा मिला रहा है धिन्नक-धिन्ना तान ।
रातोरात ख़बर फैला दी किसने कानोकान ।
बिना आँख के घूर रहे हैं
कस कर मुट्ठी बान्धे,
डाल-डाल पर उल्लू देखो
कैसी चुप्पी साधे,
उन्हे छोड़कर बाक़ी सब चिरई-चुनमुन हैरान ।
रातोरात ख़बर फैला दी किसने कानोकान ।
सुबह-सुबह आ गए कहाँ से
इतने आदमख़ोर,
जिनकी परछाईं में शामिल
गठरी-गठरी चोर,
बन्द द्वार पर चौखट-चौखट अनाहूत मेहमान ।
रातोरात ख़बर फैला दी किसने कानोकान ।