भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भोर आ जाओ गगन में / मोहित नेगी मुंतज़िर
Kavita Kosh से
भोर आ जाओ गगन में
शुभ्र ला जाओ गगन में
मैं तुम्हारी बाट जोहूँ
आज बैठा हूँ चमन में।
आओगे निज धाम से
ये बात है विश्वास में
पुष्प पल्लव दल सभी
अकुला रहे उल्लास में।
हे! निशा के प्राणभंजक
वेगी आओ निज भवन में
मैं तुम्हारी बात जोहूँ
आज बैठा हूँ चमन में।
धाराएं सप्त सिंधु की,
मान खा रही है धरा पर
अट्टाहस मुक्त कंठों से
करें वो तिमिर की ज़रा पर।
मानो स्वर्गपंथी देवसरिता
आज बहती हो बदन में।
मैं तुम्हारी बाट जोहूँ
आज बैठा हूँ चमन में।