भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भोर की किरन / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
Kavita Kosh से
काटेगा सुख यहाँ कैसे
पथ को निपट अकेले।
आओ जग के दुखों से
कुछ पल संग में लेलें।
है सुख की यही सफलता
कि सब में वह बँट जाए।
किरन भोर की जागे;
तो अँधियारा छँट जाए।