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भोर की बदरिया-ठहरो केॅ सुनीं लेॅ / कस्तूरी झा 'कोकिल'

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ठहरी केॅ, सुनीं लेॅ भोरकी बदरिया।
खोजी केॅ आनी देॅ हमरी दुलरिया।
भूख प्यास लागै नैं,
नींदो भी आबै नैं।
ढँूढ़ी केॅ बैठलऽ छी,
सारी डगरिया।
खोजी केॅ आनी देॅ हमरी दुलरिया।
ठहरी केॅ, सुनीं लेॅ भोरकी बदरिया।
पंछी नाँकी उड़बै केनाँ?
मछली नाँकी तैरबै केनाँ?
हिरन नाँकी दौड़बै केनाँ?
पचासी उमरिया।
खोजी केॅ आनी देॅ हमरी दुलरिया।
ठहरी केॅ, सुनीं लेॅ भोरकी बदरिया।
फीका-फीका लागै छै
मेला, बाजार।
सूना-सूना लागै छै,
सौंसे संसार।
असकल्लऽ दिनौंह में लागै अनहरिया।
खोजी केॅ आनी देॅ हमरी दुलरिया।
ठहरी केॅ, सुनीं लेॅ भोरकी बदरिया।