Last modified on 7 जुलाई 2007, at 15:46

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति / घनानंद

सवैया

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरी नेकु न हारति।
साँझ तें भोर लौं तारनि ताकिबो तारनि सों इकतार न टारति।
जौ कहूँ भावतो दीठि परै घनआनँद आँसुनि औसर गारति।
मोहन-सोहन जोहन की लगियै रहै आँखिन के उर आरति।। 6 ।।