भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति / घनानंद

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सवैया

भोर तें साँझ लौ कानन ओर निहारति बावरी नेकु न हारति।
साँझ तें भोर लौं तारनि ताकिबो तारनि सों इकतार न टारति।
जौ कहूँ भावतो दीठि परै घनआनँद आँसुनि औसर गारति।
मोहन-सोहन जोहन की लगियै रहै आँखिन के उर आरति।। 6 ।।