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भोर से साँझ तक धूप पीता कमल / कमलकांत सक्सेना

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भोर से सांझ तक धूप पीता कमल
रात की याद में चिलचिलाता कमल,

बात जब भी चली आपके नाम की
आँख में यार क्यों कुलबुलाता कमल,

दूर जाने लगे जान कर आप क्या
सोचिए साथ है आत्मा-सा कमल

मेघ का दर्द क्या आग थी पी गया
नीर में डूबता-तैरता-सा कमल,

आज भी पीर के गांव में नेह की
चिट्ठियाँ बांटता, बांचता-सा कमल

सांस की बांसुरी बज रही है वृथा
मीत बिन गीत भी अधमरा-सा कमल

चांदनी गुलमुहर प्यार भर दो हृदय
देखिये फिर सदा मुस्कुराता कमल