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भोर होती है उनकी सुनहरी नहीं / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
भोर होती है उन की सुनहरी नहीं।
जिन की सीमा पर होते हैं प्रहरी नहीं॥
वक्त बहती नदी है गुजर जायेगा
है लहर तो किनारे पर ठहरी नहीं॥
यूँ समन्दर को कहते हैं गहरा बहुत
भावना से कोई चीज़ गहरी नहीं॥
जो असम्भव उसे कौन सम्भव करे
रात आधी में होती दुपहरी नहीं॥
हर कदम पर निगाहों के पहरे लगे
जिंदगी होती गूंगी या बहरी नहीं॥