भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भोर / अग्निपुष्प

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाजल कौआ भेल सिनुरिया भोर
सिंगरहारक सुगन्धि सँ माँतल कन-कन ओस
गाम जागल
मजूर-किसान जागल
भागल अन्हरिया आ कुहेस
किला जकाँ ठाढ़ छै पुलिस
गामक चारू ओर।

उड़ल चिड़इ चोंच भरि दाना लेल
खेतहिमे सुखाएल कुसियार दिस
आँखि में फाटल धरती
भूखें कनैत बच्चाक नोर।
कोठी भरल
उमरल छल दलान
मालिकक आँगन मे
आइ नाचत
सोलहो कला सँ इन्द्रधनुषी भोर
केहन ई भोर
गुड्डी जकाँ कतबो ओ
उड़ए आकाश
हमरे सक्कत हाथ में छै अनन्त डोर
उमड़ल बलान सन
बढ़ल जा रहल' ए लोक
अही माटि पर खसल छल
घाम हमर इनहोर।
अपन साम्राज्य बढ़ेबाक
चारू कात छै होड़़
हमरे शोणित सँ सुग्गा सन छै
रूसी आ अमरीकी शासकक ठोर
हमरे गाम सन छै एल-साल्वाडोर