भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भोर / ओक्तावियो पास
Kavita Kosh से
सर्द, सत्वर हाथ
उतारते हैं, एक के बाद एक
अँधेरे की पट्टियाँ,
मैं अपनी आँखें खोलता हूँ—
अभी तक
मेरी साँस के तार
किसी ताज़ादम ज़ख़्म के
मर्मस्थल से जुड़े हैं।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : सुरेश सलिल