तुम्हें तो मैं पहचानता हूँ 
सूर्यास्त में
जब गोधूलि आकर
रँगीन कर देती है मेघों को, 
तुम आओ
रंगीन कर दो मेरे जीवन को
सन्ध्या नहीं, 
तुम्हारे आते ही 
हो जाता है सब कुछ भोर,
जितने समय 
तुम रहती हो मेरे पास,
वही समय हो जाता है 
मेरे लिए अछोर
मूल बाँगला भाषा से अनुवाद : रामशंकर द्विवेदी