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भोर / लुइस ग्लुक / श्रीविलास सिंह

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1.
बच्चा घूम रहा है अंधेरे कमरे में
चीखता मुझे वापस चाहिए मेरी बत्तख, मुझे वापस चाहिए मेरी बत्तख

एक ऐसी भाषा में जो समझ नहीं पता कोई जरा भी
नहीं है कोई बत्तख।

पर कुत्ता, सफ़ेद कपड़ो में सजा
कुत्ता है वहीँ पालने में उसकी बगल में।

वर्ष पर वर्ष ऐसे ही बीत जाता है अधिकांश समय।
सब कुछ एक सपने में। पर बत्तख
कोई नहीं जनता क्या हुआ उसका।

2.
वे मिले हैं बिलकुल अभी
वे सो रहे हैं एक खुली हुई खिड़की के पास।

अंशतः उन्हें जगाने को, विश्वास दिलाने को उन्हें
कि जो कुछ स्मरण है उन्हें रात्रि का, वह है सही,
अब प्रकाश आना चाहता है कमरे में,
उन्हें दिखाने को वह सन्दर्भ भी जिसमें यह हुआ था घटित:
मोज़े थोड़े छिपे एक गन्दी सी चटाई के नीचे,
हरी पत्तियों से सजी रजाई

सूरज की रोशनी विशेषतः
दिखाती है इन को पर अन्य वस्तुओं को नहीं,
निश्चित करती सीमा, अपने पर विश्वास के साथ, यूँ ही नहीं,

फिर ठहरती है, वर्णन करती है
हर एक चीज का विस्तार से,
तुनक मिजाज, अंग्रेजी की किसी रचना की भांति,
चादरों पर लगे थोड़े से रक्त का भी

3.
बाद में, अलग हो जाते हैं वे दिन भर के लिए
बाद में भी, एक डेस्क पर, बाजार में,
नहीं है संतुष्ट मैनेजर उसके दिए आंकड़ों से,
फफूंद लग गयी है बेरियों में ऊपरी परत के नीचे

इसलिए एक गुम हो जाता है दुनिया से
तब भी जब एक जारी रखता है काम इसी में

तुम पहुंचते हो घर, जब तुम ध्यान देते हो फफूंद पर।
हो चुकी होती है बहुत देर, दूसरे शब्दों में।

मानों सूरज ने अंधा कर दिया था तुम्हें एक क्षण को।