भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भोलेनाथ दिगम्बर दानी किए बिसरायल छी / मैथिली लोकगीत
Kavita Kosh से
मैथिली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
भोलेनाथ दिगम्बर दानी किए बिसरायल छी
दुनियाँ सऽ ठोकरायल छी
जे सभ गेल अहाँक द्वार, क्यो नहि भेल विमुख सरकार
बाबा हमरे बेर से भांग खाय भकुआयल छी
बाबा धरब अहाँपर ध्यान, पूजब शिवशंकर भगवान
बाबा अहाँक चरण मे हम सब लेपटायल छी
जेहन कातिक-गनपति, तेहने हम अयलहुँ शरणागत
बाबा राखी चाहे बुराबाी, आब हम थाकल छी
की हेत अयलहुँ द्वार, किछु नहि पूछै छी सरकार
बाबा प्रेम मगन रस भांग पीबि मन्हुआयल छी