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भ्रम / ओम व्यास
Kavita Kosh से
तुम
जब नहीं हो,
आसपास मेरे कहीं भी
भ्रम का एक टुकड़ा
चीरकर वर्तमान को मन में गहरे तक उतर जाता है
और
पूछता है प्रश्न वर्तमान से कि
वह सब जो भूत हो गया है
भविष्य में अंकुरित होगा?
अनुत्तरित 'मैं' मन ही मन
तौल रहा हूँ, भू वर्तमान भविष्य
से जुड़े भ्रम के उस टुकड़े कि ताकत
जो
तीनों को पल भर में
पीला देता है पानी
एक ही घाट पर
और
रोप जाता है
मेरी बंजर जमीन पर
कल्पनाओं के पौधे
जबकि यह
बिलकुल सच है कि
पावस कि तरह
तुम
अब नहीं हो पास मेरे
कहीं भी!