भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भ्रष्टाचार / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गाजर घास-सा

चारों तरफ़
क्या खूब फैला है !
देश को हर क्षण
पतन के गर्त में
गहरे ढकेला है,
करोड़ों के
बहुमूल्य जीवन से
क्रूर वहशी
खेल खेला है !

वर्जित गलित
व्यवहार है,
दूषित भ्रष्ट
आचार है।