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मँद महा मोहक मधुर सुर सुनियत / देव

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मँद महा मोहक मधुर सुर सुनियत
 
धुनियत सीस बँधी बाँसी है री बाँसी है ।
गोकुल की कुलबधू को कुल सम्हरै नही
 
दो कुल निठारै लाज नासी है री नासी है ।
कहि धौँ सिखावत सिखै धौँ काहि सुधि होय
 
सुधि बुधि कारे कान्ह डाँसी है री डांसी है ।
देव बृजवासी वा बिसासी की चितौनि वह
 
गाँसी है री हांसी वह फाँसी है री फाँसी है ।


देव का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।