भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मंगनी मा माँगे मया नई मिले रे / लक्ष्मण मस्तुरिया

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मंगनी मा माँगे मया नई मिले रे
मंगनी मा

फंदा रे फंदा मया के
मया के फंदा
दिखे मा लोभ लाये पाये मा फंदा रे
मंगनी मा

मंगनी मा माँगे मया नई मिले रे
मंगनी मा

नजर मिला के खेलो रे
खेलो रे पासा, खेलो रे पासा
चोला मगन ता छुपाये के आशा
मंगनी मा

मंगनी मा माँगे मया नई मिले रे
मंगनी मा

पाये मा माटी गवांये मा
गवांये मा हीरा, गवांये मा हीरा
छिन भर के मया अउ छिन भर के पीरा रे
मंगनी मा

मंगनी मा माँगे मया नई मिले रे
मंगनी मा


मया के आंचल काजर के
काजर के कोठी, काजर के कोठी
कतको लुकाबे तभो दाग होही रे
मंगनी मा

मंगनी मा माँगे मया नई मिले रे
मंगनी मा

मया बर पिया अउ पिया बर
पिया बर मया, पिया बर मया
नई लागे कोनों ला कोनों बर दया रे
मंगनी मा

मंगनी मा माँगे मया नई मिले रे
मंगनी मा