भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मंगळ में अमंगळ / विनोद कुमार यादव

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आम होवे का खास
तिखूंटी होवै या चौखूंटी
टूणां करयां बिन्या
मानै ई कोनीं कोई

मंगळ नें करै अमंगळ
थावर नें बरतै पावर
जाणै आ दुनियां
बां री ई है
अर बै रै’वणां चावै
फगत अकेला

पण बै
आ नीं सोचै
इण लूंठी अर ठाडी
दुनियां में
अेकला
रै‘सी कियां ?