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मंगळ में अमंगळ / विनोद कुमार यादव
Kavita Kosh से
आम होवे का खास
तिखूंटी होवै या चौखूंटी
टूणां करयां बिन्या
मानै ई कोनीं कोई
मंगळ नें करै अमंगळ
थावर नें बरतै पावर
जाणै आ दुनियां
बां री ई है
अर बै रै’वणां चावै
फगत अकेला
पण बै
आ नीं सोचै
इण लूंठी अर ठाडी
दुनियां में
अेकला
रै‘सी कियां ?