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मंगवा छाता / श्रीनाथ सिंह
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डाली डाली-की हरियाली
का न रहा वह साज
विकल बड़ी है,
गिरी पड़ी है,
सूखी पत्ती आज।
मोटे कपड़े तन को जकड़े,
करतें हैं हैरान।
जरा न भाते, अति गरमाते,
खाये लेते जान।
राह बड़ी है धूप कड़ी है,
उड़ती है अति धूल।
जल्दी माता, मंगवा छाता,
जाना मुझको स्कूल।