मंज़िले-दर्द से गुज़र आए / सरवर आलम राज 'सरवर'
मंज़िले-दर्द से गुज़र आए
आज अपने किए को भर आए !
थी क़यामत निगाह का मिलना
आँख से दिल में वह उतर आए !
आज याद आई उसकी यूँ जैसे
सुबह का भूला शाम घर आए !
ना-तवानी<ref>कमजोरी</ref> से ना-तवानी है
ग़म उठाते हुए भी डर आए !
हम अगर काम से गये तो क्या ?
आप तो अपना काम कर आए !
कैसे दुनिया से ग़म छुपाएँ जब
दिल उमँद आए , आँख भर आए !
हमने माना कि कुछ नहीं हासिल
क्या करें कोई याद अगर आए ?
आरज़ू है कि आरज़ू न रहे
चाहे फ़िर और कुछ न बर आए !
पहले जिस आरज़ू में जीते थे
आज उसी आरज़ू में मर आए !
अश्क़े-ग़म पी तो लूँ मगर हमदम
चैन ही इस तरह अगर आए !
दिल दुखे और आँख खु़श्क रहे
आए तो कैसे ये हुनर आए ?
मेरे आँसू ग़रीब के आँसू
इनमें फिर किस तरह असर आए ?
बाज़ आ अब भी इश्क़ से 'सरवर'
कितने इल्ज़ाम तेरे सर आए !