भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मंज़िल हमारी और है रस्ते हमारे और / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
मंज़िल हमारी और है रस्ते हमारे और
दुनिया हमारी और है मसले हमारे और
फूलों की तरह लोग हमें तोड़ते रहे
हँसना हमारा और है दुखड़े हमारे और
ज्वालामुखी की आँख से आँसू निकल पड़े
दरिया हमारा और है क़तरे हमारे और
रेशम का भी बंधन हमें मंजूर नहीं है
चाहत हमारी और है रिश्ते हमारे और
भूखें हैं लोग बात सितारों की हो रही
फ़सलें हमारी और हैं सपने हमारे और
वो और हैं क़लम जो बेचकर के पी गये
मस्ती हमारी और है जलवे हमारे और
शब्दों की धार को कभी मरने नहीं दिया
ग़ज़लें हमारी और हैं नग़मे हमारे और