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मंजिल हमारी और है रस्ते हमारे और / डी.एम.मिश्र
Kavita Kosh से
मंजिल हमारी और है रस्ते हमारे और।
दुनिया हमारी और है मसले हमारे और।
फूलों की तरह लोग हमें तोड़ते रहे
हँसना हमारा और है दुखड़े हमारे और।
ज्वालामुखी की आँख से आँसू निकल पड़े
दरिया हमारा और है कतरे हमारे और।
रेशम का भी बंधन हमें मंजूर नहीं है
चाहत हमारी और है रिश्ते हमारे और।
भूखें हैं लोग बात सितारों की हो रही
फसलें हमारी और हैं सपने हमारे और।
वो और हैं कलम जो बेचकर के पी गये
मस्ती हमारी और है जलवे हमारे और।
शब्दों की धार को कभी मरने नहीं दिया
ग़ज़लें हमारी और हैं नग़मे हमारे और।