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मंजूर नहीं / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
बहुत अच्छी लगती हैं मेंड़ें
खेतों की सचाई के लिए
कितनी प्यारी लगती हैं कुर्सियाँ
भलाई के लिए,
बहुत मौजूँ लगती हैं दीवारें
घरों की सुरक्षा के लिए
बहुत भली लगती हैं खाइयाँ
किलों के आस-पास,
कितनी सुन्दर लगती हैं घाटियाँ
तराई के लिए
लेकिन...
ये मेड़ें, ये कुर्सियाँ, ये दीवारें...
मुझे हरगिज मंजूर नहीं
आदमी और आदमी के बीच
(तबाही के लिए)