भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मंत्र रहना है / प्रेमलता त्रिपाठी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गंध केसर का धरा पर स्रोत बहना है।
गूँज वंदेमातरम् का मंत्र रहना है।

रक्त की हर बूँद देती है नमी जैसे,
छंद वंदेमातरम् ही तंत्र गहना है।

प्राण जीवन आस हरपल देश हित हो यदि,
कंठ वंदेमातरम् का मान कहना है।

हिंद का नारा यही है मान है अपना,
जीत वंदेमातरम् कह प्राण दहना है।

प्रेम चोला यह वसंती जीत है इसमें,
सत्य वंदेमातरम् ने वस्त्र पहना है।