मंत्र / महेन्द्र भटनागर
समता
मानव-मानव में समता
युग-युग वांछित-इच्छित समता !
प्रजाति-जाति-वर्ण-धर्म मुक्त
हो मनुष्य-लोक,
हो नहीं
मनुष्य के मिलाप में
भेद-भाव, रोक-टोक !
पहचान मनुज की
मात्रा एक
मानव तन, मानव मन।
अनुभव-चिन्तन से
उपजे विवेक
पहचान मनुज की
मात्रा एक।
अवतरित हो
ममता
मानव-मानव में ममता
मादक मादन मायल ममता।
ध्वस्त करो
अन्धी पौराणिकता
मानव-मानव के प्रति पाशविकता।
मानव ! मत भटको अब,
कल्पित भाग्य-विधानों पर
मानव ! मत अटको अब।
मूरखता, मूरखता, मूरखता।
केवल वंचकता, वंचकता।
इससे मुक्त करो
जीवन और मनुज को,
धृष्ट-दुष्ट
धर्मध्वजियों धूर्तों से
रक्षित हो मानवता।
हो सदा-सदा को दूर
विषमता,
जागे दलितों में
अपराजित अद्भुत क्षमता।
स्थापित हो
इंसानी दुनिया में
ख़ुशहाली
माली समता,
सामूहिक सामाजिक
गौरवशाली समता।