मंद समीरन का क्या मोल / राजीव रंजन प्रसाद
पाषाणों के इस जीवन में,
मंद समीरन का क्या मोल
वंशी में रोती सी लहरी
वीणा में कातर सा राग
अभिलाषों की ढली साँझ
अंतस में आशा की आग
जीवन की आँखों में अंबर
उमगों की चोली में दाग
सुमनों का आया पतझर है
काँटों की डाली में डोल
पाषाणों के इस जीवन में,
मंद समीरन का क्या मोल
उस चूल्हे की राख हैं आँखें
खाली बरतन जिसपर चुप है
उसके कदम थके-माँदे से
अंधियारा चेहरे पर घुप है
रोटी चाँद सरीखा सपना
खेल रहा उससे लुकछुप है
आज नियति कल की आशा से
जा ढुकता तम खोली खोल
पाषाणों के इस जीवन में,
मंद समीरन का क्या मोल
मानव की ही इस दुनिया में
मानव मिट्टी का ढेला क्यों?
जीवन बद से बदतर होता
तिस पर लाशों का खेला क्यों?
कुछ आँखों में क्यों दीवाली
अश्कों आहों का मेला क्यों?
अब हो जाओगे रेत सुनो
यह ऊँचे परबत से दो बोल
पाषाणों के इस जीवन में,
मंद समीरन का क्या मोल
११.०८.१९९१