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मंहगाई ऒर नया साल / विनोद पाराशर

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हमने कहा-
नेताजी! मंहगाई का हॆ बुरा हाल
बीस रुपये किलो आटा
अस्सी रुपये दाल
मुबारक हो नया साल.
देसी घी का दिया-
सिर्फ प्रभु के सामने जला रहे हॆं
ऒर-हम खुद!
सूखे टिक्कड चबा रहे हॆं.
बच्चों को-
दूध नहीं/चाय पिला रहे हॆं
रो-धोकर-
गृहस्थी की गाडी चला रहे हॆं.
पांच रुपये वाला सफर
अब दस में तय होता हॆ
सच कहूं!
मन-अन्दर ही अन्दर रोता हॆ.
इस नये साल में-
कुछ तो कीजिये
थोडी-बहुत राहत
हमें भी दीजिये.
वो बोले-थोडा सब्र कीजिये!
इस नये साल में-
हम एक नयी योजना बना रहे हॆं
प्राचीन संस्कृति फिर से ला रहे हॆं
हमारे पूर्वजों ने-
पूरी जिंदगी बिता दी
सिर्फ एक लंगोट में
आप घूमते हॆं
हर रोज/नये पॆंट-कोट में.
दर-असल!
कम कपडों में रहना
एक कला हॆ
इसमें/हम सभी का भला हॆ.
इस कला का प्रचार-
हर शहर/हर गांव में करवायेंगें
इस शुभ काम के लिए-

आदरणीय
’मल्लिका सेहरावत’ जी को बुलवायेंगे.
हमारे ऋषियों ने कहा हॆ-
कम खाओ, ज्यादा पीओ
लंबा जीवन जीओ.
हम भी कहते हॆं-
कम खाईये,ज्यादा पीजिये
अपनी सुविधानुसार-
बोतल,अद्धा,पव्वा या पाउच लीजिये.
कुछ लोग-
आरोप लगाते हॆं
कि-हम
सिर्फ अमीरों को ही पिलाते हॆं.
इस नये साल में-
हम-
हर शहर,हर गांव व हर गली में
यह सुविधा उपलब्ध करवा रहे हॆं
’विदेशी ब्रांड’ का अच्छा माल
समाज के हर तबके के लिए ला रहे हॆं.
जरा पीकर तो देखिये-
ऎसा मजा आयेगा!
मंहगाई,बेरोजगारी व गरीबी जॆसा-भयानक सपना
आपको कभी नहीं डरायेगा.
हम तो कहते हॆं-
खुद भी पीजिये
ऒरों को पिलाइये
सभी को प्रेम से गले लगाइये
नये साल का जश्न हॆ
जरा धूम-धाम से मनाइये.