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मकड़ी रो जाळो / कन्हैया लाल सेठिया

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कोनी दिखै मकड़ी रै जाळै में
कठेई छेद,
किंयां ले ज्यावै
भख नै मांय
इणरो कांई भेद ?
फैंकै निज री देही स्यूं
नहीं दीसतो तार
समेट लै बा जकै नै पाछो
फंसता पाण सिकार,
ईंयां ही ईं जगत रो गोरखधंधो
कोनी जाण सकै जीव
घालै लो कणां काळ फन्दो ?