मकर संक्रान्ति के दिवस का शीर्षक / ज्ञानेन्द्रपति

मकर संक्रान्ति के दिवस का शीर्षक

रात को मिलता है

देर से घर लौटते

जब सरे राह

स्ट्रीट लाईट की रोशनी का पोचारा पुते फलक पर

एक परछाईं प्रसन्न हाथ हिलाती है


वह एक पतंग है

बिजली के तार पर अटकी हुई एक पतंग

रह-रह हिलाती अपना चंचल माथ

नभ को ललकती

एक वही तो है इस पृथ्वी पर

पार्थिवता की सबसे पतली पर्त

जो अपने जिस्म से

आकाश का गुरुत्वाकर्षण महसूस करती है

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.