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मकसद / सपना मांगलिक
Kavita Kosh से
छूट गिरफ्त बादलों की सूरज
बैचैन रौशनी फैलाने को
बदल भी तो करते हैं श्रम
रिमझिम बूँदें बरसाने को
धरा आतुर सीने पर अपने
फसल हरी उगाने को
नभ टंकरित करता है ध्वनि
ऊर्जा देती हमको अग्नि
जल से सबको प्राप्त जीवन
करे प्राणों का संचार पवन
इंसान ,जानवर, पेड़ -पौधे सारे
गृह –उपग्रह, चाँद और तारे
करें कर्म निरंतर ,निर्धारित हद
जुटे रहते करने को पूरा
अपने होने का मकसद