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मक़बूल-ए-अवाम हो गया मैं / 'ज़फ़र' इक़बाल

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मक़बूल-ए-अवाम हो गया मैं
गोया के तमाम हो गया मैं

एहसास की आग से गुज़र कर
कुछ और भी ख़ाम हो गया मैं

दीवार-ए-हवा पे लिख गया वो
यूँ नक़्श-ए-दवाम हो गया मैं

पत्थर के पाँव धो रहा था
पानी का पयाम हो गया मैं

उड़ता हुआ अक्स देखते ही
फैला हुआ दाम हो गया मैं