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मक़ामात-ए-रतन / रतन पंडोरवी

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क्या तुम को ये मालूम है गुमनाम 'रतन' भी
हर वक़्त तुम्हें बज़्मे-अदीबां में मिलेगा

क्या तुम को ये मालूम है वो गहन का मुसव्विर
बहता हुआ आलाम के तूफां में मिलेगा

क्या तुम को ये मालूम है वो महवे-महब्बत
दिल थामे हुए कूचाए-जानां में मिलेगा

क्या तुम को ये मालूम है वो रिंदे-ख़राबात
पैमाना ब-कफ़ सुहबते-रिंदां में मिलेगा

क्या तुम को ये मालूम है वो मेहरमे-फ़ितरत
मस्तूर किसी जल्वए-ताबां में मिलेगा

क्या तूं को ये मालूम है वो तालिबे-मंज़िल
खोया हुआ ज़र्राते-परीशां में मिलेगा

काम उस को ज़माने के अलाइक से नहीं कुछ
वो सब से अलग महफ़िले-इम्कां में मिलेगा

हस्ती के दक़ाइक़ हैं बहुत ज़िहन में उस के
हंसता हुआ वो शहरे-खमोशां में मिलेगा

उस तफ्ता जिगर को न कहीं ढूंढने जाओ
वो आह के हर शोलए-लरजां में मिलेगा

जब कोंपलें फूटेंगी चटक जाएंगे गुंचे
हमराह बगूलों के बियाबां में मिलेगा

हंगामा बपा हो जो कभी जोशे-जुनूँ से
वो दश्त बकफ़ गोशए-जिन्दां में मिलेगा

तारीकीए-इसियां में उसे ढूंढने वालो
वो राज़े-जज़ा रहमते-यज़ीदां में मिलेगा

देखे तो कोई उस की फलक सेर निगाहें
ज़ुहरा में मिलेगा कभी केवां में मिलेगा

मफ़्तूने-सुख़न उस को अगर ढूंढना चाहें
वो सहर बयां मानीए-पिंहाँ में मिलेगा

मशरिक़ के शहंशाह की जब होगी हुक़ूमत
वो इल्म की तहक़ीक़ के ऐवां में मिलेगा।