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मकाँ देखे मकीं देखे ला-मकाँ देखा / रियाज़ ख़ैराबादी
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मकाँ देखे मकीं देखे ला-मकाँ देखा
कहाँ कहाँ तुझे ढूँढा कहाँ कहाँ देखा
झुका झुका है तो हाँ गिर पडे़ मिरे सर पर
यही न यास से था सू-ए-आसमाँ आसमाँ
बहुत से रिंद भी देखे बहुत से ज़ाहिद भी
इन्हें तो पीर हमेशा उन्हें जवाँ देखा
अब आरज़ुएँ बर आईं कि ख़ाक में मिल जाएँ
ख़ुदा ने दिन ये दिखाया उन्हें जवाँ देखा
ये जानते हैं दिल ख़ाक हो गया जल कर
न आग देखी न उठते हुए धुआँ देखा
क़फ़स में रह के सितम तेरे देख लें सय्याद
चमन में रह के बहुत लुत्फ़-ए-बाग़बाँ देखा
‘रियाज़’ ख़ाक-ए-दर-ए-मय-कदा था जीते जी
फ़ना के बाद उसे ख़ुल्द-ए-आशियाँ देखा