भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मकान बा सटल-सटल / रामकिशोर प्रसाद श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
मकान बा सटल-सटल
हिया मगर बँटल-बँटल
रहल भइल इहाँ कठिन
सनेह मोल बा घटल
पहाड़ पीर हो गइल
मयार आँख ना सटल
जहर भरल हवा इहाँ
बा साँस-साँस से कटल
तमाम उम्र कट गइल
भरम ना प्रीत के हटल