भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मक्खी पड़ी मलाई में / हरि फ़ैज़ाबादी
Kavita Kosh से
मक्खी पड़ी मलाई में
हैं दोनों कठिनाई में
बहुत फ़ासला ठीक नहीं
शादी और सगाई में
दिल में थी वो सदा मगर
ग़ज़ल हुई तन्हाई में
नहीं मिलेगा क्यों मोती
जाओ तो गहराई में
कैसे उसको आग कहूँ
जो है दियासलाई में
कहें ग़ैर को क्या अपने
जब मेरी रुसवाई में
घर में ख़ुश सब कैसे हों
आख़िर एक कमाई में