भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मक्खी / लक्ष्मी खन्ना सुमन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लहरा अपने 'पर' मक्खी
उड़ती इधर-उधर मक्खी

हाथ उड़ाते जब उसको
धुनती अपना सर मक्खी

छूट गया जब मीठा तो
हाथ मले उड़कर मक्खी

कानों पास सुनाती है
भिन-भिन अपना स्वर मक्खी

जिस बच्चे का घर गंदा
देती उसको ज्वर मक्खी

हो खाना या हो कूड़ा
कहती खुला न धर मक्खी

'सुमन' बहारें क्या उसको
पेट रही बस भर मक्खी