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मगन बरसलै बदरा / रूप रूप प्रतिरूप / सुमन सूरो
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मगन बरसलै बदरा!
कल-कल छल-छल नदी उमड़लै, सजलै धरती अँचरा!
झूमै छल-छन जंगल उपबन,
पत्ता-पत्ता डंठल के मन,
फूल कली निखरी-सिहरी केॅ बनलै माला-गजरा!
सिरजन-सिरजन कुहर मचाबै,
धरती के कण-कण गजुराबै,
डोलै चक्-चक् चंचल चितवन, बोरी भरखर कजरा!
सारस हंस मोर तन नाँचै,
प्रेम-विभोर प्रिया मन बाँचै,
फूल-पंखुड़ी के प्याली में, डुबलै बेसुध भमरा!
बसै झिम-झिम प्रेम बुनरिया,
सिहरै अगजग मौन बहुरिया,
करै सिंगार पिया मन-भावन, सहज बिसारी झगरा!
भीजै नगर गाँव-घर भीजै,
सासुर भीजै, नैहर भीजै,
पवन परोसै प्रेम सुधारस टलटल डबरी-डबरा!
अनहद नाद ताल-सुर बाजै,
फूल सहसदल फूलै राजै,
प्रकृति-पुरुष झूलै झुलवा पर, अथक पियासल नजरा!