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मगर तुम सीं हुआ है आशना दिल / शाह मुबारक 'आबरू'

मगर तुम सीं हुआ है आशना दिल
कि हम सीं हो गया है बे-वफ़ा दिल.

चमन में ओस के क़तरों की मानिंद
पड़े हैं तुझ गली में जा-ब-जा दिल.

जो ग़म गुज़रा है मुझ पर आशिक़ी में
सो मैं ही जानता हूँ या मेरा दिल.

हमारा भी कहाता था कभी ये
सजन तुम जान लो ये है मेरा दिल.

कहो अब क्या करूँ दाना के जब यूँ
बिरह के भाड़ में जा कर पड़ा दिल.

कहाँ ख़ातिर में लावे ‘आबरू’ कूँ
हुआ उस मीरज़ा का आशना दिल.