मगही कवि भाय बालेसर / गौतम-तिरिया / मुचकुन्द शर्मा
भाय बालेश्वर बाढ़ मोकामा के तों बड़ी धरोहर,
व्यंग्य तीर से घाव करा हा नाम चलो है तोहर।
बाढ़ कोर्ट परिसर के तों हा जानल-चीन्हल चेहरा,
न्याय आर अन्याय बीच में दे रहला हें पहरा।
बचपन से अबतक तों करते रहला बड़ी तपस्या,
एक-एक के बाद आ रहल भारी कठिन समस्या।
सबके तोड़ला तों हिम्मत से होला न कभी अधीर,
अपन कर्म से बदल देला हें तों अप्पन तकदीर।
कभी चलैला रिक्शा, कभी पहुँचला बाँध फरक्का,
कभी न हटला पीछे तों हा सदा बात के पक्का।
अपने तों संघर्ष झेलला सबके खूब हँसैला,
कागज-पत्तर कविता से हय भरल तोर ई थैला।
टलही मिट्टी के सुगंध मगही कविता मंे भरला,
व्यंग्य वाण छोडे़ में कहियो तों न कजै भी डरला।
सफल मंच कवि तों हा तोरा आते होल इंजोर,
तों पूरे समाज के कविता से रहला झकझोर।
जल में कमल समान कचहरी में करते हा काम
चलते रहला सदा कभी कैला नै तों आराम।
‘दुस्सासन बैठल दलान पर’ पढ़लों कत्ते बार,
अप्पन कविता से अन्हार के तों रहला हें फाड़।
श्याम काय कवि तोर कलम के हम मानो ही लोहा,
लिखवै अगलाबार तोरा पर कत्ते ने हम दोहा।
मगह अकादमी के सदस्य जानल मानल हा मूरत,
अब बिहार में तोर नाम जानल-पहचानल सूरत।
हे अमृतवर्षी सपूत जीओ तों शत-शत साल,
तोरा से मगही कविता बिहार के उन्नत भाल।