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मचिया बैठलि मातु कोसिला, बालक मुँह निरखल हो / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

राम-जन्म का उल्लेख इस गीत में किया गया है। दशरथ के चारों पुत्रों का जन्म हुआ हे। सोहर गाया जा रहा है। आनंद बधावे बज रहे हैं। नार काटने के लिए डगरिन सोने की छुरी लेकर बैठी है तथा नेग के लिए हठ कर रही है। मुँह माँगा इनाम पाकर वह नार काटती है। सभी स्त्रियाँ शिशुओं को देखकर प्रसन्न हो रही हैं तथा उन्हें पलने पर झुलाकर खेला रही हैं। सभी शिशु पान की तरह पतले, कसैली की तरह ढुलमुल, फूल जैसे सुकुमार और चन्दन की तरह महमह हैं।

मचिया बैठलि मातु कोसिला, बालक मुँह निरखल हो।
ललना रे, मोरा बेटा परान के अधार, नैन बीच राखब हो॥1॥
कोसिला के जनमल, रामचंदर, कंकइ भरथ जी न हो।
ललना रे, सुमितरा के जनमल दुइ बीर, लखन रिपुसूदन हो॥2॥
मिलि जुलि सखि सब आयल, सोहर मँगल गाबै लागल हो।
ललना रे, सब मन होयत आनंद, बजत गिरही नौबत हो॥3॥
सोरही<ref>सुरभि; कामधेनु</ref> गैया के गोबर मँगाइ, अँगना निपाओल हो।
ललना रे, गजमोती चौंक<ref>चोंका</ref> पुरायल, कलसा धरायल हो॥4॥
सोने के छुरिया मँगाय, दगरिन हाथ लिहले हो।
ललना रे, दगरिन माँगय नेग, तब नार काटब हो॥5॥
दगरिन माँगय इनाम हाथी घोड़ा, रथ पलकिया न हो।
ललना रे, माँगय अजोधा ऐसन राज, रतन के गहनमा, हीरा के मुँदरिआ न हो॥6॥
मुँहमाँगल दान पाओल, सोने छूरी नार काटल हो।
सोना के खड़ाम चढ़ि राजा, पलँग भय पौढ़ल<ref>बैठे; लेटे</ref> हो।
ललना रे, मिलि जुलि रानी खेलाबहि, पलना झुलाबहि हो॥7॥
पनमा ऐसन बाबू पातर, सुपरिया ऐसन ठुरठुर<ref>गोलमटोल तथा सुंदर</ref> हो।
ललना रे, फूलवा ऐसन सुकुँआर, चनन ऐसन मँहमँह हो॥8॥

शब्दार्थ
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