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मची हुई सब ओर खननखन / महेश अनघ
Kavita Kosh से
मची हुई सब ओर खननखन
यूरो के घर-डॉलर के घर
करे मदन रितु चौका-बर्तन
किस्से पेंग चढ़े झूलों के
यहाँ बिकाने वहाँ बिकाने
बौर झरी बूढ़ी अमराई
क्या-क्या रख लेती सिरहाने
सबका बदन मशीनों पर है
मंडी में हाज़िर सबका मन
मान मिला हीरा-पन्ना को
माटी में मिल गया पसीना
बड़े पेट को भोग लगा कर
छुटकू ने फिर कचरा बीना
अख़बारों में ख़बर छपी है
सबको मिसरी सबको माखन
सोलह से सीधे सठियाने
पर राँझे की उमर न पाई
फूटे भांडे माँग रहे हैं
और कमाई और कमाई
जहाँ रकम ग्यारह अंकों में
वहाँ प्रेत-सा ठहरा जीवन
दो बच्चे तकदीर मगन है
एक खिलाड़ी एक खिलौना
दो यौवन व्यापार मगन है
एक शाह जी एक बिछौना
मुद्रा का बाज़ार गरम है
इसमें कहाँ तलाशें धड़कन