भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मछरी मछरी केत्ता पानी / बोली बानी / जगदीश पीयूष
Kavita Kosh से
मछरी मछरी केत्ता पानी
लहर लहर मा साजिस नाचै
तट पर बगुला पोथी बांचै
गालबजउवा ह्वै गे ग्यानी
घड़ियालन कै कुनबा बढ़िगा
ज्वांकन का है पारा चढ़िगा
नाचि रहीं भंवरै तूफानी
बुड्डी मारैं नाउ डुबावैं
रिसवति लै कै पार लगावैं
देखि रही सब कुतिया कानी
धार फाइलन मा धंसि जाई
कउनौ चोरकट्टा हंसि जाई
कही कि येहिमा का हैरानी