भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मछरी मछरी केत्ता पानी / सुशील सिद्धार्थ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मछरी मछरी केत्ता पानी॥

लहर लहर मा साजिस नाचै
तट पर बगुला पोथी बांचै
गालबजउवा ह्वै गे ग्यानी॥

घड़ियालन कै कुनबा बढ़िगा
ज्वांकन का है पारा चढ़िगा
नाचि रहीं भंवरै तूफानी॥

बुड्डी मारैं नाउ डुबावैं
रिसवति लै कै पार लगावैं
देखि रही सब कुतिया कानी॥

धार फाइलन मा धंसि जाई
कउनौ चोरकट्टा हंसि जाई
कही कि येहिमा का हैरानी॥